गझललेख |
शे(अ)रो शायरी, भाग-८ : कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाये है मुझ से |
मानस६ |
गझल |
अबोला गाजला होता |
मयुरेश साने |
गझल |
मी विस्कटल्या खोलीत मनाच्या.. |
बहर |
गझल |
हात होतो पुढे भिकार्यांचा |
बेफिकीर |
पृष्ठ |
शुभेच्छा, अभिनंदन इत्यादी |
विश्वस्त |
गझल |
सोकावलेल्या अंधाराला इशारा |
गंगाधर मुटे |
गझल |
पहा दिशाही रुसून बसल्या तुझ्यासारख्या. |
सोनाली जोशी |
गझल |
पाणी थकले, जमीन थकली... |
वैभव देशमुख |
गझल |
''सावली'' |
कैलास |
गझल |
मिसरे |
क्रान्ति |
गझल |
ह्याहून मोठे अक्रीत काही घडणार नाही |
विजय दि. पाटील |
गझल |
''वेदना'' |
कैलास |
गझल |
जिथे मी पोचलो तेथे तुझे माहेर होते |
बेफिकीर |
गझल |
बघ तुझ्या येण्यामधे हे केवढे मांगल्य आहे |
विजय दि. पाटील |
गझल |
मी डाव मांडलेला........ |
मनिषा नाईक. |
गझल |
प्रकाश स्वप्ने.. |
बहर |
गझल |
मोडून यार गेला संसार आज माझा .. |
शाम |
गझल |
पुन्हा पुन्हा !! |
supriya.jadhav7 |
गझल |
आज भारंभार झाली आसवे !!! |
supriya.jadhav7 |
गझल |
वेड तो लावून गेला (गझल) |
मनिषा नाईक. |
गझल |
ती जुनी वही दिसली खिळखिळली माझी |
चित्तरंजन भट |
गझल |
अजूनही |
आनंदयात्री |
गझल |
तू ..... |
supriya.jadhav7 |
गझल |
भाष्य |
कुमार जावडेकर |
गझल |
' कहाणी...'( गझल ) |
mamata.riyaj@gm... |