गझललेख |
सहज मनापर्यंत पोहोचलेले.... |
ह बा |
गझल |
तिथे ये पहाटे... |
ह बा |
गझल |
भेटाया आल्या गझला, त्याच्या नंतर. |
ह बा |
गझल |
उसवित बसले बूड कवी हे ज्या झोळ्यांचे |
ह बा |
गझल |
जपलेली हळहळ |
ह बा |
गझल |
गेल्यात रे चकोरा बाटून या सरी... |
ह बा |
गझल |
हरवलाच रुखवती उखाण्याचा गोडवा |
ह बा |
गझल |
अपघात काय घडला? |
ह बा |
गझल |
इतकी सुंदर ढाल? |
ह बा |
गझल |
माणसाला म्हणे मारते भाकरी! |
ह बा |
गझल |
चालतो ऐसा जणू .... |
ह बा |
गझल |
नसतीच आसवे तर.... |
ह बा |
गझल |
सहज फिराया आलेला सासरला श्रावण. |
ह बा |
गझल |
पुढेच जात जा... |
स्वामीजी |
गझल |
शोधायचा कशाला? |
स्वामीजी |
गझल |
चालणे टाळायचे का? |
स्वामीजी |
गझल |
बासरी नादावली रे... |
स्वामीजी |
गझल |
उ:शाप |
स्वामीजी |
गझल |
माझे कसे म्हणावे.... |
स्वामीजी |
गझलचर्चा |
जोडाक्षराच्या पुढील मागील शब्दाचे लघु गुरु कसे असतात ? |
स्वप्ना |
पृष्ठ |
सुखकर्ता |
स्वप्ना |
पृष्ठ |
यशोदीप |
स्वप्ना |
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कवीमन चौकटी मानणार नाही |
स्वप्ना |
गझल |
तेंव्हा.. |
स्नेहदर्शन |
गझल |
जीवना माझ्या बरोबर चालतांना |
स्नेहदर्शन |