४ गझला : चंद्रशेखर सानेकर |
विश्वस्त |
28 October 2008 |
१२.५५ ए एम - ११.०२.०९ ट्रान्स! |
भूषण कटककर |
11 February 2009 |
ह्याहून मोठे अक्रीत काही घडणार नाही |
विजय दि. पाटील |
22 December 2010 |
ह्या कशा उबदार ओळी... |
वैभव जोशी |
28 July 2009 |
ह्या मनाचे, दुश्मनाचे काय करावे ?.... |
खलिश |
5 April 2010 |
होतीस तू |
अनिल रत्नाकर |
20 June 2010 |
होकार |
आनंदयात्री |
4 February 2010 |
हो गझल गैरमुसलसल आता.. |
बेफिकीर |
28 February 2011 |
हॉटेल पॅराडाइज, पुणे. दि. १९.०१.०९ रात्री ११.३० |
भूषण कटककर |
20 January 2009 |
हेच असे असते जगणे... |
अजय अनंत जोशी |
5 June 2010 |
हेच असावे सत्य... |
अजय अनंत जोशी |
25 May 2010 |
हे सुगंधाचे निघाले काफिले! |
मानस६ |
24 May 2009 |
हे शहरच आता दिसते... |
मधुघट |
9 March 2008 |
हे शहर माझी व्यथा सांभाळते |
प्रसन्न शेंबेकर |
2 May 2009 |
हे फुलांचे उधान झाडांना... |
वैभव देशमुख |
16 August 2011 |
हे तेच ते दिनरात.. |
केदार पाटणकर |
1 August 2009 |
हे जीवना तुझी टपरी चालते मला |
बेफिकीर |
24 November 2009 |
हे खेळ संचिताचे .....! |
गंगाधर मुटे |
29 August 2010 |
हे खरे ना? |
विसुनाना |
18 June 2007 |
हृदय असते उगाचच! |
भूषण कटककर |
14 October 2008 |
हुडकतो मी |
भूषण कटककर |
9 August 2008 |
हुंदका साधा तुझा सांगून गेला |
सोनाली जोशी |
23 July 2009 |
हुंदका ओठातला पोटात नाही |
supriya.jadhav7 |
9 September 2011 |
हुंदका उरातच गोठवायचा आहे |
वैभव वसंतराव कु... |
17 April 2014 |
ही सरिता रुसली आज किनाऱ्यावरती... |
मानस६ |
31 August 2007 |