ग झ ल : रात्र थोडी गार होती .....

५.


रात्र  थोडी  गार होती , नी  तुझा सहवास पण
मैकद्याचा  कैफ  होता,मोगरयाचा  वास  पण ....१.


तो अबोला जाळणारा,नी  तुझी  कातिल  नजर
बांगड्यांच्या  लय  ध्वनि  वर  चालणारे  श्वास  पण....२.


मी  न माझा राहिलो  नी , तू  न  तुझ्या  बंधनी
ईश्वराचा  भास  देई ,  ते  गुलाबी   भास  पण....३.


केतकीचे  हे  जणू  सारे  च  वन  मी  घेतले
आज  बाहूपाश  माझे  दंश  झेली  आग  पण....४.


हे  स्मरण  त्या मोहरात्रींचे  कसे  विसरू ` खलिश '
तो  खरा  आस्वाद  होता, नी  जिवाचा  नाद  पण....५.


` खलिश '- विठठ्ल घारपुरे / अहमदाबाद / २०-०६-२००९.

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