गझल |
भेटत राहू |
केदार पाटणकर |
गझल |
पाखरे खाऊन गेली चाळलेल्या वेदना |
ह बा |
गझल |
गुंजते कानात हाळी... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
तरी हुंदक्यांना गिळावे किती? |
गंगाधर मुटे |
गझल |
जुने, विसरून गेलेले... |
ज्ञानेश. |
गझल |
जाणिवा विसरून गेलो ..... |
ह बा |
गझल |
कसा करावा या भयगंडाचा निचरा |
अनंत ढवळे |
गझल |
खुशाली |
आनंदयात्री |
गझल |
लिहायचे ते लिहून टाकू |
बेफिकीर |
गझल |
पंढरी |
मिल्या |
गझल |
ती जुनी वही दिसली खिळखिळली माझी |
चित्तरंजन भट |
गझल |
उसवित बसले बूड कवी हे ज्या झोळ्यांचे |
ह बा |
गझल |
अतोनात तिटकारा येतो |
supriya.jadhav7 |
गझल |
व्यासही माझ्यात...मी व्यासात आहे...! |
प्रदीप कुलकर्णी |
गझल |
बंद दिवसाच्या घराचे दार ... |
वैभव देशमुख |
गझल |
पाय ओढायला जडतात ती! |
ह बा |
गझल |
कुर्निसात |
केदार पाटणकर |
गझल |
जाहला बराच वेळ... |
ज्ञानेश. |
गझल |
जात आहे मार्ग टाळूनी तुला |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
चमकण्याचे अचानक कारण येते... |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
..चर्चा |
ज्ञानेश. |
गझल |
कुठे भास होतो तुझ्या कंकणांचा.. |
ज्ञानेश. |
गझल |
दिसू लागले स्पष्ट जेवढे |
चित्तरंजन भट |
पृष्ठ |
देवनागरीत असे लिहावे! |
निनावी (not verified) |
गझल |
नाचली काळीज ते पेलीत काही माणसे |
ह बा |